प्रयागराज, गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के पवित्र संगम के रूप में प्रसिद्ध है। 2025 में आगामी कुम्भ मेला प्रयागराज को महत्त्वपूर्ण गंतव्यों में से एक बनाता है। उत्तर प्रदेश राज्य का यह ऐतिहासिक शहर वास्तव में हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिख तीर्थयात्रियों और इतिहास प्रेमियों के लिए एक धरोहर है। यहाँ प्राचीन मन्दिरों, स्मारकों और विभिन्न पर्यटक आकर्षणों की एक समृद्ध परम्परा रही है। प्रयागराज के केंद्र में प्रतिष्ठित त्रिवेणी संगम को 2025 के महाकुम्भ मेले में भाग लेने वाले किसी भी व्यक्ति को जरूर देखना चाहिए। इसके अतिरिक्त प्रयागराज में और भी अनेक आकर्षण है, जिसमें शामिल हैं:
- मन्दिर: लेटे हनुमान मन्दिर,आलोप शंकरी मन्दिर, वेणी माधव / ललिता देवी मन्दिर, शंकरविमानमण्डपम मन्दिर, अक्षयवट और मनकामेश्वर मन्दिर आदि मन्दिरों का दर्शन करके प्रयागराज की सांस्कृतिक-धार्मिक विरासत का अन्वेषण करें। इनमें से प्रत्येक मन्दिर ऐतिहासिक-धार्मिक महत्त्व से भरा हुआ है।
- ऐतिहासिक स्थल: अशोक स्तंभ - एक प्राचीन स्तम्भ जो भारत के ऐतिहासिक अतीत के प्रमाण के रूप में खड़ा है। इसके शिलालेखों के बारे में जानें।
- औपनिवेशिक वास्तुकला: प्रयागराज में औपनिवेशिक युग की इमारतों का खजाना है, जिसमेंं स्वराज भवन एक उल्लेखनीय उदाहरण है। ये संरचनाएं शहर के औपनिवेशिक इतिहास और वास्तुकला की भव्यता की झलक प्रदान करती हैं।
- सांस्कृतिक विरासत: कुम्भ मेले के अतिरिक्त, प्रयागराज की सांस्कृतिक विरासत के भी दर्शन होंगे। जब आप चहल-पहल भरी सड़कों और बाज़ारों से गुज़रते हैं तो स्थानीय संस्कृति, कला और व्यंजनों का आनन्द लेते हुए आप प्रयागराज की सांस्कृतिक विरासत से भी परिचित होंगे।
- शिक्षण संस्थान: यह शहर प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों का भी घर है, जिसमेंं पूर्व का ऑक्सफ़ोर्ड कहा जाने वाला प्रतिष्ठित इलाहाबाद विश्वविद्यालय भी शामिल है, जिसने भारत के बौद्धिक इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
महाकुम्भ-2025, एक पवित्र तीर्थयात्रा और आस्था का उत्सव है जो दुनिया के सभी कोनों से लाखों भक्तों और यात्रियों को आकर्षित करता है। जैसे ही आप इस असाधारण यात्रा पर आगे बढ़ेंगे, आपको ढेर सारे आकर्षण मिलेंगे जो महाकुम्भ को वास्तव में एक अनूठा और विस्मयकारी आयोजन बनाते हैं।
महाकुम्भ 2025 मेले के प्रमुख आकर्षण
श्री लेटे हुए हनुमानजी मन्दिर
दारागंज मोहल्ले में गंगा जी के किनारे श्री लेटे हुए हनुमानजी मन्दिर है। यह कहा जाता है कि संत समर्थ गुरु रामदास जी ने यहाँ भगवान हनुमान जी की मूर्ति स्थापित की थी। शिव-पार्वती, गणेश, भैरव, दुर्गा, काली एवं नवग्रह की मूर्तियाँ भी मन्दिर परिसर में स्थापित हैं। निकट में श्री राम जानकी मन्दिर एवं हरित माधव मन्दिर हैं।
अक्षयवट और पातालपुरी मन्दिर
अक्षयवट ‘‘अविनाशी वटवृक्ष‘‘ हिंदू पौराणिक कथाओं और हिंदू ग्रंथों में वर्णित एक पवित्र बरगद का पेड़ है। बौद्ध तीर्थयात्री ह्वेनसांग और पुरातत्त्वविद्, अलेक्जेंडर, कनिंघम जैसे इतिहासकारों और यात्रियों ने अक्षयवट वृक्ष का बहुत विस्तार से अपने वृत्तांतों उल्लेख किया है। यह वृक्ष महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि कहा जाता है कि यहीं पर रामायण के नायक राम, लक्ष्मण और सीता ने अयोध्या से अपने वनवास के दौरान विश्राम किया था। पातालपुरी मन्दिर:पातालपुरी मन्दिर भारत के सबसे पुराने मन्दिरों में से एक है, जिसका इतिहास वैदिक काल से जुड़ा हुआ है। यह खूबसूरती से सजा हुआ भूमिगत मन्दिर इलाहाबाद किले के भीतर अमर वृक्ष अक्षयवट के पास बना है ।
सरस्वती कूप
सरस्वती कूप एक पवित्र कुआँ है, जो त्रिवेणी संगम स्थित किले के अंदर है। महाकुम्भ मेला 2025 के लिए सरस्वती कूप का जीर्णोद्धार एक महत्त्वपूर्ण पहल है, जिसका उद्देश्य इस पवित्र कुएं के आध्यात्मिक महत्त्व को बहाल करना और बढ़ाना है। इस परियोजना में इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व को संरक्षित करने के लिए सावधानीपूर्वक जीर्णोद्धार प्रयास शामिल हैं, जिससे तीर्थयात्रियों को इस पवित्र आयोजन के दौरान गहरा जुड़ाव महसूस हो।
मनकामेश्वर मन्दिर
किला के पश्चिम यमुना तट पर मिन्टो पार्क के निकट यह मन्दिर स्थित है। यहाँ काले पत्थर की भगवान शिव का एक लिंग और गणेश एवं नंदी की मूर्तियाँ हैं। यहाँ हनुमान जी की भी एक बड़ी मूर्ति है और मन्दिर के निकट एक प्राचीन पीपल का पेड़ है।
महर्षि भारद्वाज आश्रम
मुनि भारद्वाज से सम्बद्ध यह एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। मुनि भारद्वाज के समय यह एक प्रसिद्ध शिक्षा केन्द्र था। कहा जाता है कि भगवान राम अपने वनवास के प्रारम्भ पर चित्रकूट जाते समय सीता जी एवं लक्ष्मण जी के साथ इस स्थान पर आए थे। वर्तमान में वहाँ भारद्वाजेश्वर महादेव, मुनि भारद्वाज, तीर्थराज प्रयाग और देवी काली इत्यादि के मन्दिर हैं। निकट ही सुन्दर भारद्वाज पार्क एवं आनन्द भवन है।
श्रृंगवेरपुर
प्रयागराज जिले में लखनऊ रोड पर लगभग 45 कि.मी की दूरी पर स्थित श्रृंगवेरपुर महत्वपूर्ण स्थल है। लोककथाओं के अनुसार यही वह जगह है जहाँ भगवान राम ने मां सीता और लक्ष्मण जी के साथ वनवास पर जाते हुए रास्ते में गंगा नदी को पार किया था। रामायण में इस स्थान का वर्णन निषादराज के साम्राज्य की राजधानी के रूप मे किया गया है। श्रृंगवेरपुर में उत्खनन के दौरान यहाँ श्रृंगी ऋषि का मंदिर सामने आया है। माना जाता है कि शहर को यह नाम ऋषि से ही प्राप्त हुआ है। रामायण में यह उल्लिखित है कि श्रृंगवेरपुर में भगवान राम ने भाई लक्ष्मण व पत्नी सीता के साथ एक रात बिताई थी क्योंकि मांझी ने उन्हें नदी पार करने से इंकार कर दिया था जिसके उपरांत स्वयं निषादराज समस्या का हल निकालने के लिए पहुंचे थे। ऐसा कहा जाता है कि निषादराज ने यह शर्त रखी कि भगवान राम को तभी नदी पार करवाएंगे जब वह अपने चरणों को धोने की अनुमति देंगे। माना जाता है कि भगवान राम ने उसे अनुमति दे दी तथा उसने भगवान राम के चरण गंगा नदी के पानी से धोए और उसी को पीकर भगवान राम के प्रति अपनी श्रद्धा को दर्शाया। जिस स्थान पर निषादराज ने भगवान राम के पैरों को धोया था, वह एक मंच द्वारा चिन्हित किया गया है।
पवित्र स्नान
महाकुम्भ में सबसे महत्त्वपूर्ण अनुभवों में से एक गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों के संगम पर पवित्र स्नान में भाग लेना है। आध्यात्मिक उपलब्धि और मोक्ष की आकांक्षा में लाखों तीर्थयात्रियों के पवित्र जल में डुबकी लगाने वाले दृश्यों की अद्वितीय अनुभूति का आनंद लें।
अखाड़ा शिविर
अखाड़ा शिविर वे स्थान हैं जहाँ आध्यात्मिक साधक, साधु और संन्यासी अध्यात्म तथा दार्शनिक चर्चा करने, ध्यान में लीन होने और अपने ज्ञान को साझा करने के लिए इकट्ठा होते हैं। दार्शनिक संवाद में शामिल होने और तपस्वी जीवनशैली को करीब से देखने के लिए इन शिविरों का भ्रमण तथा अन्वेषण करें।
आध्यात्मिक प्रवचन और सत्संग
महाकुम्भ प्रसिद्ध संतों, गुरुओं और विद्वानों के नेतृत्व में आध्यात्मिक प्रवचनों और सत्संगों में भाग लेने का एक अद्वितीय अवसर प्रदान करता है। ये सभाएँ हिंदू धर्म के प्राचीन ज्ञान और शिक्षाओं के सम्बन्ध में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं।
सांस्कृतिक प्रदर्शन
महाकुम्भ में भारत की समृद्ध सांस्कृतिक समागम के साक्षी बने। शास्त्रीय संगीत और नृत्य प्रदर्शन, लोक कला प्रदर्शनियों और पारम्परिक थिएटर का आनंद लें। महाकुम्भ भारत की विविध विरासत का जीवंत प्रदर्शन का, दृश्य और श्रव्य उत्सव है।
शिल्प और खाद्य बाज़ार
चहल-पहल भरे बाज़ारों की सैर करें, जहाँ शिल्पकार नक्काशीदार गहनों से लेकर हाथ से बुने हुए वस्त्रों तक अपने शिल्प कौशल का प्रदर्शन करते हैं। क्षेत्रीय व्यंजनों की विविध श्रेणी को पेश करते हुए, खाद्य स्टालों पर भारत के विभिन्न क्षेत्रों के स्वादों का आनंद लें।
योग और ध्यान
कुम्भ में आयोजित योग और ध्यान के माध्यम से आंतरिक शान्ति और आध्यात्मिक रूपांतरण का प्रयास करें। जहाँ अनुभवी गुरु प्रतिभागियों को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक सद्भाव प्राप्त करने में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
सांस्कृतिक जुलूस और परेड
भारत की सांस्कृतिक विविधता को प्रदर्शित करने वाले जुलूस और परेडों का हिस्सा बनें। इन जुलूसों में हाथी, घोड़े, और खूबसूरती से सजे हुए रथ भी शामिल होते हैं।
पर्यावरणीय पहल
महाकुम्भ-2025 धारणीय और पर्यावरण संरक्षण पर जोर दिया जा रहा है। इस पवित्र पर्यावरण के संरक्षण में योगदान देने के लिए संचालित वृक्षारोपण अभियान, सफाई प्रयासों और जागरूकता अभियानों में भाग लें।
कला प्रतिष्ठान और प्रदर्शनियाँ
भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत का उत्सव मनाने वाले कला प्रतिष्ठानों और प्रदर्शनियों को देखकर आनंद उठाए। ये प्रदर्शन लोगों की कलात्मक रचनात्मकता और समर्पण का प्रमाण हैं।
घाटों पर आरती
नदी तट पर मंत्रमुग्ध कर देने वाली गंगा आरती के अनूठे आनंद की अनुभूति करें। आकाश को रोशन करने वाले हजारों दीपकों का दृश्य और मन को झंकृत कर देने वाला मंत्रोच्चार एक अविस्मरणीय आध्यात्मिक अनुभव पैदा करता है। महाकुम्भ-2025 सिर्फ एक आयोजन नहीं है; यह एक परिवर्तनकारी यात्रा है जो आपको अपने अंतर्मन से जुड़ने और भारतीय आध्यात्मिकता और संस्कृति की गहनता का अनुभव करने की अवसर देती है। इन आकर्षणों का अन्वेषण करें और महाकुम्भ की अपनी तीर्थयात्रा को जीवन भर के लिए रोमांचक और अविस्मरणीय बनायें।