"प्रामाणिक इतिहास के आरम्भ के शताब्दियों पूर्व से जिस भू-भाग पर प्रयागराज (इलाहाबाद) स्थित है, वह सभ्य मानव जाति के प्रवास का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। जहाँ प्रागैतिहासिक काल के इसके सम-सामयिक स्थल बेबीलोन एवं कार्थेज आज समाप्त हो गये हैं, वहीं प्राचीन भारतीय पौराणिक नगर प्रयाग आज भी विद्यमान है एवं विभिन्न आयामों में उत्तरोत्तर प्रगति कर रहा है।"
600 ई०पू० में वर्तमान प्रयागराज जनपद के विभिन्न भागों को आवृत्त करता हुआ वत्स महाजनपद था, जिसकी राजधानी "कौशाम्बी" थी। इसके अवशेष आज भी प्रयागराज के दक्षिण-पश्चिम में स्थित हैं। गौतम बुद्ध ने अपनी तीन यात्राओं से इस शहर को गौरव प्रदान किया। इस क्षेत्र के मौर्य साम्राज्य के अधीन आने के पश्चात् कौशाम्बी को अशोक के प्रांतों में से एक का मुख्यालय बनाया गया था। उसके अनुदेशों के अधीन दो एकाश्म स्तम्भों का निर्माण कौशाम्बी में किया गया था, जिनमें से एक को कालांतर में प्रयागराज (इलाहाबाद) स्थानान्तरित कर दिया गया था।
मौर्य साम्राज्य की पुरातन वस्तुओं एवं अवशेषों की खुदायी जिले के एक अन्य महत्त्वपूर्ण स्थान 'भीटा' से की गयी है। मौर्यकाल के पश्चात् शुंगों ने वत्स या प्रयागराज क्षेत्र पर राज्य किया। यह प्रयागराज जिले में पायी गयी शुंगकालीन कलात्मक वस्तुओं से परिलक्षित होता है। शुंगो के पश्चात् कुषाण सत्ता में आए; कनिष्क की एक मुहर और एक अद्वितीय मूर्ति लेखन कौशाम्बी में पायी गयी है, जो उसके राज्य के द्वितीय वर्ष के दौरान की है। कौशाम्बी, भीटा एवं झूँसी में गुप्त काल की वस्तुएँ भी पायी गयी हैं। अशोक स्तम्भ पर समुद्रगुप्त की प्रशस्ति की पंक्तियां उत्कीर्ण हैं एवं झूँसी में आज भी समुद्र कूप विद्यमान है। गुप्तों के पराभव के उपरान्त प्रयागराज का भविष्य विस्मृत हो गया। चीनी यात्री हृवेनसांग ने 7वीं शताब्दी में प्रयागराज की यात्रा की और प्रयाग को मूर्तिपूजकों के एक महान शहर के रूप में वर्णित किया, जिसका तात्पर्य है कि ब्राह्मणवाद की महत्ता उनकी यात्रा के समय तक स्थापित रही।
1540 में शेरशाह हिन्दुस्तान का शासक हो गया, इसके कार्यकाल में पुरानी ग्रांड ट्रंक रोड आगरा से कड़ा तक बनायी गयी थी। उस समय यह पूर्व में प्रयागराज, झूँसी और जौनपुर तक बनायी गयी थी। 1557 में झूँसी एवं प्रयाग के अधीन ग्राम मरकनवल में जौनपुर के विद्रोही गवर्नर और अकबर के मध्य एक युद्ध लड़ा गया था। विजय के उपरांत अकबर एक दिन में ही प्रयाग आया और वाराणसी जाने के पूर्व दो दिनों तक यहाँ विश्राम किया, तब उसने इस सामरिक स्थान पर एक किला के महत्त्व का अनुभव किया।
अकबर वर्ष 1575 में पुनः प्रयाग आया और एक शाही शहर की आधारशिला रखी, जिसे उसने 'इल्लाहबास' या 'अल्लाह का निवास' कहा। अकबर के शासन के अधीन नवीन शहर तीर्थयात्रा का महत्त्वपूर्ण स्थान हो गया। शहर के महत्त्व में तीव्र विकास हुआ और अकबर के शासन की समाप्ति के पूर्व इसके आकार और महत्त्व में पर्याप्त वृद्धि हुई।
मोतीलाल नेहरू का जन्म 6 मई, 1861 को गंगाधर नेहरू के पुत्र के रूप में हुआ। मोतीलाल नेहरू विश्व प्रसिद्ध अधिवक्ता के साथ-साथ भारतीय स्वतत्रंता संग्राम में भी सक्रिय भागीदार थे एवं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक महत्त्वपूर्ण नेता थे। इन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में 1919 एवं 1928 में सेवाएँ दी। यह प्रथम ऐसे भारतीय थे जिन्होने 1928 में नेहरू रिपोर्ट के माध्यम से ब्रिटिश शासन से पूर्ण ‘स्वराज’ की मांग की। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इन्ही के इकलौते पुत्र-रत्न थे।
मदन मोहन मालवीय का जन्म प्रयागराज में 25 दिसम्बर, 1861 को पण्डित बृजनाथ एवं मूना देवी के घर एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह एक भारतीय शिक्षाविद् एवं राजनीतिज्ञ थे जिनकी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। सम्मान के साथ उन्हें पण्डित मदन मोहन मालवीय के रूप में सम्बोधित किया जाता था। इन्हें वर्ष 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के संस्थापक के रूप में सर्वाधिक जाना जाता है। बी0एच0यू0 एशिया के सबसे बड़े आवासीय विश्वविद्यालयों में से एक है, जहाँ कला, विज्ञान, अभियांत्रिकी, चिकित्सा, कृषि, कार्यकारी कला, विधि एवं तकनीक के क्षेत्र में सम्पूर्ण विश्व से 40,000 से अधिक छात्र पढ़ते हैं। ये वर्ष 1919-1938 तक बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति थे। वह भारत में स्काउटिंग के संस्थापकों में से एक थे। इनके द्वारा 1909 में प्रयागराज से लोकप्रिय अंग्रेजी समाचार 'द लीडर' का प्रकाशन किया गया। वह वर्ष 1924 से 1946 तक हिन्दुस्तान टाइम्स के अध्यक्ष भी रहे। उनके प्रयासों का ही परिणाम था कि 'हिन्दुस्तान दैनिक' के नाम से इसका हिन्दी संस्करण भी प्रकाशित होना शुरू हुआ। पण्डित जी को मरणोपरान्त 24 दिसम्बर, 2014 को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान "भारत रत्न" से सम्मानित किया गया।
डॉ० अमरनाथ झा का जन्म 25 जनवरी 1897 को बिहार के मधुबनी जिले में मिथिला के एक मैथिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह संस्कृत के महान विद्वान सर गंगानाथ झा के सुपुत्र थे। वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय एवं बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति थे। वह अपनी मातृभाषा मैथिली के साथ-साथ हिन्दी, अंग्रेजी, फारसी, उर्दू व बांग्ला में समान रूप से पारंगत थे। अमरनाथ झा को समकालीन भारत के सर्वाधिक सक्षम प्राध्यापक का सम्मान प्राप्त था। वह लम्बे समय तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के विभागाध्यक्ष रहे। उन्हें इस पद पर केवल 32 वर्ष की आयु में नियुक्त किया गया था। इनका 59 वर्ष की अल्पायु में 1947 में पटना में निधन हुआ। वह अपने पिता के उत्तराधिकारी के रूप में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति बने और डॉ० राधाकृष्णन के उत्तराधिकारी के रूप में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति रहे।
इन्होंने भारतीय प्रतिरक्षा अकादमी की परियोजना समिति के उपाध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। वह राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) से सम्बद्ध प्रमुख विभूतियों में से भी एक थे। डॉ० झा को लोक सेवा आयोग, उत्तर प्रदेश के प्रथम अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त होने के साथ बिहार लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष भी रहने का भी गौरव प्राप्त हुआ।
14 नवम्बर, 1889 को जन्में पण्डित जवाहर लाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधान मंत्री और स्वतंत्रता के पूर्व और पश्चात् भारतीय राजनीति के केन्द्रीय पुरूष थे। वह भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के एक प्रमुख नेता के रूप में महात्मा गांधी के सान्निध्य में उभर कर सामने आए। 1947 में भारत के स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापना से वर्ष 1964 में अपनी मृत्यु तक उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में भारत की सेवा की।
वह आधुनिक भारत के एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और प्रजातांत्रिक गणराज्य के निर्माता माने जाते हैं। उन्हें कश्मीरी पण्डित समुदाय से होने के कारण पण्डित नेहरू के रूप में भी जाना जाता है जबकि भारतीय बच्चे उन्हें 'चाचा नेहरू' के रूप में भी जानते हैं।
सूर्यकान्त त्रिपाठी का जन्म 21 फरवरी, 1896 को बंगाल के मिदनापुर के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था, जो कि मूलतः गढ़ाकोला, उन्नाव, उत्तर प्रदेश से थे। वह साहित्यिक क्षेत्रों यथा कवि सम्मेलनों में भाग लिया करते थे। यद्यपि वो बांग्ला विषय के छात्र थे तथापि निराला जी ने अपने बाल्यकाल से ही संस्कृत में अधिक रूचि ली। इन्होंने सामाजिक अन्याय और समाज में शोषण के विरूद्ध दृढ़तापूर्वक लिखा। 15 अक्टूबर 1961 को इनकी मृत्यु हो गई।
सुमित्रानन्दन पंत का जन्म 20 मई, 1900 को ग्राम कौसानी जिला-बागेश्वर, जो अब उत्तराखण्ड राज्य में है के एक शिक्षित मध्यम-वर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनकी मां का देहान्त उनके जन्म के कुछ घंटो पश्चात् हो गया, और ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें अपनी दादी, पिता या बड़े भाई से स्नेह नहीं मिला, जो कि उनके लेखन में परिलक्षित होता है। उनके पिता स्थानीय चाय बागान में प्रबंधक के रूप में कार्य करते थे और एक भू-धारक भी थे।
वर्ष 1968 में पंत प्रथम हिन्दी कवि हुए, जिन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ, जो भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान है। इन्हें इनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध कविता संग्रह ‘चिदम्बरा’ के लिए यह पुरस्कार दिया गया था। पंत को भारत की साहित्य अकादमी के द्वारा दिया जाने वाला साहित्य अकादमी सम्मान ‘‘काला एवं बूढ़ा चाँद’’ के लिए दिया गया था। पंत जी का निधन 28 दिसम्बर, 1977 को प्रयागराज के उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनका कौसानी स्थित बचपन का घर एक संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है, जिसमें इनकी दैनिक उपयोग की वस्तुयें, इनकी कविताओं के आलेख, पत्रों और इनके पुरस्कारों को प्रदर्शित किया गया है। श्री पंत जी को हिंदी साहित्य के शब्द-शिल्पी के रूप में जाना जाता है।
विजयलक्ष्मी पण्डित एक भारतीय राजनायिका एवं राजनीतिज्ञ थी, जिनका जन्म 18 अगस्त, 1900 में प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) में हुआ। वह जवाहर लाल नेहरू की बहिन एवं इंदिरा गांधी की बुआ थी। पण्डित विजयलक्ष्मी को सोवियत संघ, यू0एस0ए0 और संयुक्त राष्ट्र में राजदूत के रूप में सेवा करने के पश्चात् भारत के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण राजनायिक के रूप में लंदन भेजा गया था। लंदन में उनका कार्यकाल भारत-ब्रिटिश सम्बंधों में परिवर्तन के व्यापक प्रसंग में अंतर्दृष्टि का बोध कराती है। उनका उच्चायोग का कार्यकाल अंतर्शासकीय सम्बन्धों का एक मापदण्ड है।
ध्यानचंद का जन्म प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) में सोमेश्वर दत्त सिंह के यहाँ 29 अगस्त, 1905 को हुआ था। उनके दो भाई थे। उनके पिता जी ब्रिटिश इंडियन आर्मी में काम करते थे। जहां वह हॉकी खेला करते थे। वह केवल 6 वर्षों तक स्कूल जा सके क्योंकि उनके पिता की स्थानान्तरणीय सेवा के कारण उनके परिवार को एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाना पड़ता था। युवावस्था में कुश्ती से इनका विशेष लगाव था। हॉकी में भारत के लिए तीन स्वर्ण पदकों के विजेता, भारतीय हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद निःसंदेह खेल को गरिमा प्रदान करने वाले सर्वोत्तम खिलाड़ी थे। वह उस समय की महान हॉकी टीम के एक सदस्य थे जब विश्व हॉकी में भारत का दबदबा था। एक खिलाड़ी के रूप में उनकी गोल करने की क्षमता अतुलनीय थी व तत्समय विश्व में सर्वोपरि थी।
एक साहसी स्वतंत्रता सेनानी और एक निडर क्रांन्तिकारी चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म भावरा, मध्य प्रदेश में 23 जुलाई, 1906 को हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भावरा में और उच्च शिक्षा संस्कृत पाठशाला वाराणसी में प्राप्त की। बहुत कम आयु में ही वह क्रांन्तिकारी गतिविधियों से जुड़ गये। वह महात्मा गांधी द्वारा शुरू किये गये असहयोग आन्दोलन में शामिल हुए। दिनांक 27 फरवरी, 1931 को अपने एक सहयोगी के द्वारा धोखा दिये जाने पर उन्हें ब्रिटिश पुलिस के द्वारा अल्फ्रेड पार्क, प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) में घेर लिया गया था। वह बहादुरी से लड़े किन्तु पकड़े जाने से बचने का कोई अन्य विकल्प न होने पर उन्होंने खुद को गोली मार ली और एक आज़ाद व्यक्ति के रूप में मरने की अपनी इच्छा की पूर्ण की। वर्तमान में इस पार्क का नाम 'अमर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद पार्क' है।
महादेवी वर्मा का जन्म दिनांक 26 मार्च, 1907 को फर्रूखाबाद में हुआ था और उन्होंने अपनी शिक्षा क्रास्थवेट गर्ल्स स्कूल, प्रयागराज से पूर्ण की। अपने स्कूल में वह अपनी सहपाठिनी छात्रा सुभद्रा कुमारी चौहान से मिली, जो बाद में एक विशिष्ट हिन्दी लेखिका एवं कवयित्री हुई। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त की और संस्कृत में स्नातकोत्तर उपाधि वर्ष 1933 में पूर्ण किया। महादेवी वर्मा को हिन्दी साहित्य की छायावादी युग के चार बड़े कवियों में से एक माना जाता है। महादेवी वर्मा को उनके कविता संग्रह ‘यामा’ के लिए ज्ञानपीठ सम्मान मिला। अन्य रचनाओं में से एक ‘नीलकण्ठ’ है जिसमें एक मोर के साथ इनके अनुभवों का वर्णन है, जिसे 7वीं कक्षा के लिए केन्द्रीय माध्यामिक शिक्षा परिषद के पाठ्यक्रम में एक अध्याय के रूप में संकलित किया गया है। इन्होंने 'गौरा' भी लिखा है जो इनके वास्तविक जीवन पर आधारित है, इस कहानी में उन्होंने एक सुंदर गाय के बारे में लिखा है।
हरिवंश राय, जिन्हें उनके लेखनी उपनाम ‘बच्चन’ से अधिक जाना जाता है। वह 20वी शताब्दी की नई कविता आन्दोलन के एक सुप्रसिद्ध भारतीय कवि थे। 27 नवम्बर, 1907 को ब्रिटिश इंडिया में आगरा एवं अवध के संयुक्त प्रान्त में प्रयागराज में एक हिन्दू अवधी कायस्थ परिवार में इनका जन्म हुआ। सुप्रसिद्ध हिन्दी कवि होने के कारण उनको हिन्दी कवि सम्मेलनों में आदर के साथ आमंत्रित किया जाता था। वह अपनी कृति "मधुशाला" के लिए सबसे अधिक जाने जाते हैं। वह सामाजिक कार्यकर्ता तेजी बच्चन के पति एवं विश्वप्रसिद्ध अभिनेता अभिताभ बच्चन के पिता थे। वर्ष 1986 में उन्हें उनकी हिन्दी साहित्य की सेवा के लिए पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया था।
श्रीमती इन्दिरा गांधी का जन्म आनन्द भवन, प्रयागराज में 19 नवम्बर, 1917 में जवाहर लाल नेहरू के घर हुआ था। इनका पूरा नाम इन्दिरा प्रियदर्शिनी गांधी था। इनको भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनने का गौरव मिला। इन्दिरा गांधी अपनी प्रतिभा और राजनीतिक दृढ़ता के लिए विश्व राजनीति में लौह महिला के रूप में जानी जाती थीं। कुशाग्रबुद्धि इन्दिरा की शिक्षा भारत, स्विटजरलैण्ड व आक्सफोर्ड लंदन में हुई। इनके काल में ही भारत परमाणु सम्पन्न राष्ट्र बनने के साथ ही अन्तरिक्ष विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में सिरमौर बना और विकास की उक्त प्रक्रिया आज भी सतत जारी है।
नरगिस, जिनका मूल नाम फातिमा राशिद था, का जन्म कोलकाता, पश्चिम बंगाल में 1 जून, 1929 को हुआ। उनके पिता अब्दुल राशिद मूलतः रावलपिंडी, पंजाब के रहने वाले थे। उनकी माँ जद्दनबाई प्रयागराज के मेजा तहसील के चिलबिला गांव की निवासी थीं। उन्होंने भारत में उस समय जाग्रत हो रही सिनेमा की संस्कृति से नरगिस को परिचित कराया। उन्होंने 5 साल की कम उम्र में 'तलाशे हक' (1935) फिल्म में एक छोटी लड़की के रूप में अपना प्रथम अभिनय किया तथापि उनकी अभिनय यात्रा 'तमन्ना' (1942) फिल्म के साथ आरंभ हुई और वह हिन्दी सिनेमा की महानतम अभिनेत्रियों में से एक रहीं।
अभिताभ बच्चन का जन्म 11 अक्टूबर, 1942, उत्तर प्रदेश में प्रयागराज में हुआ था। इनके पिता हरिवंश राय बच्चन अवधी लोकभाषा-हिन्दी के कवि थे। बच्चन का नाम इंकलाब जिंदाबाद, जिसका उपयोग भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में किया जाता था, से प्रेरित होकर ‘इंकलाब’ रखा गया था। बच्चन ने वर्ष 1969 में फिल्मों में प्रवेश किया। सात हिन्दुस्तानी फिल्म में सात कलाकारों में से एक के रूप में इन्होंने अपना पहला अभिनय किया। वह एक फिल्म अभिनेता, निर्माता पूर्व राजनीतिज्ञ हैं। सर्वप्रथम इनको फिल्म जंजीर, दीवार और शोले के लिए प्रसिद्धि मिली और इन्हें ‘‘ऐंग्री यंग मैन’’ कहा गया। बच्चन को उनके फिल्मी जीवन में बहुत अधिक पुरस्कार प्राप्त हुए जिसमें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, सर्वोत्तम अभिनेता और अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में कई पुरस्कार सम्मिलित है।
मृणाल सेन की राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म भुवनशोम में आवाज-उद्घोषक के रूप में प्रथम प्रवेश किया, इन्होंने 15 फिल्म फेयर पुरस्कार जीते। अभिनय के अतिरिक्त बच्चन ने पार्श्वगायक फिल्म निर्माता, दूरदर्शन प्रस्तोता के रूप में कार्य किया। भारत सरकार ने पद्म श्री से वर्ष 1984 में इनका सम्मान किया, वर्ष 2001 में पद्मभूषण और 2015 में पद्म विभूषण से कला क्षेत्र में इनके योगदान के लिए सम्मान किया गया। फ्रांस की सरकार ने इन्हें अपने सर्वोच्च सिविल सम्मान ‘‘नाइट ऑफ दि लीजन ऑफ ऑनर’’ से वर्ष 2007 में इन्हें सम्मानित किया।
हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की एक भारतीय गायिका शुभा मुद्गल का जन्म 1959 में प्रयागराज में हुआ। इनका ख्याल, ठुमरी और दादरा जैसी गायन विधाओं के साथ-साथ भारतीय पाप संगीत पर भी अधिकार रहा है। इन्हें कई पुरस्कार प्राप्त हुए और उनको विशिष्ट कलात्मक प्रस्तुति के लिए सम्मानित किया गया। वर्ष 2000 में इन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। संगीत के अलावा मुद्गल को वामपन्थ का समर्थन करने और स्वयं को प्रगतिशील संगठनों तथा शबनम हाशमी की 'अनहद' एवं 'शामत' से जुड़ने के लिए भी जाना जाता है।
राय बहादुर सर सुन्दरलाल का जन्म नैनीताल के निकट जसपुर में दिनांक 21 मई, 1857 को हुआ था। वर्ष 1876 में उन्होंने म्योर सेंट्रल कालेज, प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) में प्रवेश लिया। पण्डित सुन्दरलाल ने वर्ष 1880 में उच्च न्यायालय की वकील परीक्षा पास कर वकील के रूप में नामांकित हुए। वर्ष 1896 में उच्च न्यायालय ने उन्हें एडवोकेट की प्रस्थिति में प्रोन्नत किया। आपको वर्ष 1905 में "रायबहादुर" की उपाधि से विभूषित किया गया। 1906 में वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रथम भारतीय कुलपति नियुक्त हुए तथा वर्ष 1907 में इन्हें सी०आई०ई० के रूप में नियुक्त किया गया। वर्ष 1916 में उन्हें बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय का संस्थापक कुलपति नामित किया गया था। उनके सम्मान में बी0एच0यू0 ने अपने चिकित्सा विज्ञान संस्थान का नाम सर सुन्दर लाल अस्पताल रखा है। 21 फरवरी, 1917 को सुन्दरलाल को 'नाइट' की उपाधि से सम्मानित किया गया। 13 फरवरी, 1918 को 61 वर्ष की आयु में सर सुन्दरलाल जी का निधन हो गया है।